कातिक २९, जनकपुर । श्रद्धा, भक्ति आ सम्पूर्ण तराईके साझा सांस्कृतिक प्रतिबिम्बके रुपमे मनाओल जाएबला छठि पावनि रबिदिनसँ धार्मिक परम्परा अनुसार हर्षोल्लासके सँग मनाओल जारहल अछि ।
सत्य आ अहिंसाप्रति मानवको रुचि बढाबयबला आ सब जीवप्रति सहानुभूति राखय अभिप्रेरित करयबला तराईवासीके महान् चाड अछि, छठि पावनि । तराईके सब जातजातिके साझा रुपमे मनाबयके अई पावनिके विशेषता अछि । सूर्य उपासना परम्पराके मोहक पद्धति मानलगेल संसारमे याह एकटा एहन पावनि अछि जाहिमे डुबैत आ उगैत सूर्यके पूजा कएल जाइत अछि । अहि पावनिामे आवश्यक सरसामानके जुटाब लेल तराईमे एक महिना आगुएसँ लोकसभ लगैत अछि ।
विशेष क तराईवासीके कात्तिक शुक्लपक्षमे मनावयबला ई पावनि चारि दिनधरि मनाओल जाईत अछि । कात्तिक महिनाके चौथीसँ व्रत ल ई पावनिके मनावय सुरुवात कएल जाति अछि आ सप्तमीके भिन्सर ई पावनिके समापन कएल जाति अछि । पहिल दिन अर्थात् चतुर्थीके दिनके ‘अरबा–अरबाइन’ या नहाय खाए सेहो कहल जाति अछि । अहि दिनमे व्रतालुसब नदी, खोला, पोखरी आ तलाउ सहितक जलाशयमे जा क नहाए क शुद्ध भ पवित्र खाना खाईत अछि । व्रतीसब भोजनमे माछमाउस, लहसुन, प्याज आ मरुवा जेहन वस्तुके परित्याग क अहिदिनसँ व्रत राखय लगैत अछि ।
पञ्चमी तिथि दोसर दिनके ‘खरना’ अर्थात् पापके क्षय सेहो कहल जाति अछि । खरना छठि पावनिके एक दिन आगु भेलासँ अई दिनमे व्रतालुसब दिनभरि निर्जला व्रत करैत छथि आ साँझमे नहा म पवित्र भ अपन कुल देवताके नयाँ चुल्हासँ बनाओल गेल प्रसाद चढाओल जाति अछि । प्रसादके रुपमे विशेष क पाकल केरा आ खीरके लेल जाति अछि । ओकरबाद गाईके गोबरसँ निप क अरबा चाउरके आँटासँ बनल पिठारसँ भूमि पवित्र क व्रतीसब रातिमे चन्द्रमाके खीर चढाक वायह प्रसाद ग्रहण करैत अछि । अहि दिनके बाद व्रतीसब पूर्ण व्रत लैत छथि ।
सत्य आ अहिंसाप्रति मानवको रुचि बढाबयबला आ सब जीवप्रति सहानुभूति राखय अभिप्रेरित करयबला तराईवासीके महान् चाड अछि, छठि पावनि । तराईके सब जातजातिके साझा रुपमे मनाबयके अई पावनिके विशेषता अछि । सूर्य उपासना परम्पराके मोहक पद्धति मानलगेल संसारमे याह एकटा एहन पावनि अछि जाहिमे डुबैत आ उगैत सूर्यके पूजा कएल जाइत अछि । अहि पावनिामे आवश्यक सरसामानके जुटाब लेल तराईमे एक महिना आगुएसँ लोकसभ लगैत अछि ।
विशेष क तराईवासीके कात्तिक शुक्लपक्षमे मनावयबला ई पावनि चारि दिनधरि मनाओल जाईत अछि । कात्तिक महिनाके चौथीसँ व्रत ल ई पावनिके मनावय सुरुवात कएल जाति अछि आ सप्तमीके भिन्सर ई पावनिके समापन कएल जाति अछि । पहिल दिन अर्थात् चतुर्थीके दिनके ‘अरबा–अरबाइन’ या नहाय खाए सेहो कहल जाति अछि । अहि दिनमे व्रतालुसब नदी, खोला, पोखरी आ तलाउ सहितक जलाशयमे जा क नहाए क शुद्ध भ पवित्र खाना खाईत अछि । व्रतीसब भोजनमे माछमाउस, लहसुन, प्याज आ मरुवा जेहन वस्तुके परित्याग क अहिदिनसँ व्रत राखय लगैत अछि ।
पञ्चमी तिथि दोसर दिनके ‘खरना’ अर्थात् पापके क्षय सेहो कहल जाति अछि । खरना छठि पावनिके एक दिन आगु भेलासँ अई दिनमे व्रतालुसब दिनभरि निर्जला व्रत करैत छथि आ साँझमे नहा म पवित्र भ अपन कुल देवताके नयाँ चुल्हासँ बनाओल गेल प्रसाद चढाओल जाति अछि । प्रसादके रुपमे विशेष क पाकल केरा आ खीरके लेल जाति अछि । ओकरबाद गाईके गोबरसँ निप क अरबा चाउरके आँटासँ बनल पिठारसँ भूमि पवित्र क व्रतीसब रातिमे चन्द्रमाके खीर चढाक वायह प्रसाद ग्रहण करैत अछि । अहि दिनके बाद व्रतीसब पूर्ण व्रत लैत छथि ।
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