Thursday, November 11, 2010

छठि

मधेसवासीहरुको महान् पर्व छठ अन्तर्गत आज खरना । चार दिनसम्म चल्ने यो पर्व अन्तर्गत पहिलो दिन बुधवार व्रतालुहरु स्नान गरी शुद्ध भोजन गरेका छन् जसलाई अरबा-अरबाइन खान पनि भन्ने गरिएको छ । यसलाई जीउ शुद्ध गर्ने दिनसमेत भनिन्छ । अरबा-अरबाइनका दिनदेखि व्रतालुले माछा मासु लसुन प्याज कोदो मसुर वस्तु परित्याग गरी व्रत सुरु गर्छन् । यस्तै आज व्रतालु महिलाहरु दिनभरि व्रत बसी साँझमा छठि मैयालाई पुकार गर्दै पुजा गरेर खरना गर्नेछन् । खरनामा व्रतालुहरु विशेष गरेर सख्खर मिलाएको गम्हरीको खीर रोटी मुला आदि खाने गर्दछन् । आज राति व्रतालुहरु खरना खाएपछि छठ पर्वका लागि विना अन्न जलको निराहार व्रत सुरु गर्नेछ । भोलि शुक्रवार साँझमा व्रतालुहरु विभिन्न जलासायमा गई अस्ताएको सूर्य देवतालाई अर्घ दिनेछ भने शनिबार बिहान अस्ताउँदो सूर्यलाई अर्घ दिएर व्रत समाप्त गर्नेछ ।
जीवनदायी शाब्दी सूर्यदेवता र छठीमाताको आराधना यस पर्वमा गरिन्छ । छठलाई निकै कठिन पर्वको रुपमा पनि लिइन्छ । चार दिनको यस पर्वमा व्रतालु दुई दिन विनाअन्नपानी भोकै बस्नुपर्दछ । तराईका विभिन्न जिल्लाको चोक गल्ली पसल-पसल र घरघरमा अहिले गीत-सङ्गीत गुाजयमान भएको छ । सदरमुकाम मलंगवामा मात्र छठ लगभग एक दर्जन पोखरीको किनारमा छठ घाट बनाई यो पर्व मनाइन्छ । छठलाई हर्षोल्लासका साथ मनाउन मलंगवाको झिम नदी कृष्ण मति विधालय नजिकको पोखरी मुल्ही पोखरी शिवसागर पोखरी नासी पोखरी पव्लीक मावि नजिकको पोखरीलगायतको पोखरी बेहुलीझैँ सिङ्गारिने कार्य भइरहेको छ ।
यसैवीच मधेशमा सांस्कृतिक पर्वको रुपमा रहेको तथा दिदी भाईको बीचको स्नेहको प्रतिक लोकपर्व सामा चकेवा सुरु भएको छ । लोक आस्थाको महान् पर्व छठको साथ साथै सामा चकेवाको मधुर गीतले सम्पूर्ण मधेसको वातावरण गुन्जायमान भएको छ र चारैतिर यसको चहलपहल सुरु भइसकेको छ । चकेवा पर्व कात्तिक महिनाको शुक्ल पक्षको पाचमी तिथिदेखि नौ दिनसम्म पूर्णिमासम्म मनाइने गरिन्छ । पर्वको बेला दिदीबहिनीहरु आफ्नो दाजुभाइको दीर्घजीवन एवम् सम्पन्नताको मंगलकामना गर्ने गर्दछिन् । अहिले मधेसको बजारहरुमा विभिन्न किसिमको रंगमा सिङ्गारिएको सामा चकेवाहरु कुमालेहरुले बेचेको पाइन्छ । मधेसका युवतीहरु छठको खरनादेखि पारणसम्म सामा चकेवा किन्ने गर्दछिन् । यस पर्वमा यसवतीहरु सामा चकेवालाई राख्नका लागि आर्कषक किसिमको बाँसको डाला बनाएको हुन्छ ।
श्रद्धा,भक्ति आ सम्पूर्ण सझिया सांस्कृतिक प्रतिबिम्बक पहिचानके रुपमे मनाओल जाएबला छठि पावनि आईसँ धार्मिक परम्परा अनुसार हर्षोल्लासके सँग मनाओल जा रहल अछि।
सत्य आ अहिंसा प्रति रुचि बढाबएबला तथा सम्पूर्ण जीव प्रति साहानुभुति रखबालेल अभिप्रेरित करएबला तराईवासीक महान पावनि अछि छठि।तराईक सभ जाति एहिके सझिया रुपसँ मनबैत अछि जे एकर विशेषता अछि।
सूर्य उपासना परम्पराक मोहक पद्धति मानलगेल संसारमे यहाय एकटा पावनि अछि जाहिमे अस्ताईत आ उगैत सूर्यके पूजा कएल जाति अछि।एहि पावनिकेलेल आवश्यक समाग्रीके ओरिआओईन पावनिक किछु दिन पहिनेसँ शुरु भऽ जाति अछि।
विशेष कऽकऽ कार्तिक शुक्ल पक्षसँ शुरु होबएबला ई पावनि चारि दिन धरि मनाओल जाति अछि।कार्तिक चतुर्दशी दिनसँ व्रतालु एहि पावनिके मनाबक शुरु करैत अछि जे सप्तमिके भिन्सर समाप्त होइत अछि।
पहिल दिन अर्थात चतुर्दशी दिनके अरबा अरबाईन अथवा नहाए खाए कहल जाति अछि।
एहि दिनमे व्रतालुसभ नदी,पोखरि,तलाव,जलाशय आदिमे नहा कऽ शुद्ध भऽकऽ शुद्ध खाना खाएल करैत छथि।
व्रतालुसभ भोजनमे माछ माउस,लहसुन,प्याउज आ मरुवा सहितक चिज परित्याग कऽकऽ एहि दिनसँ व्रत शुरु कऽ दैत छथि।
पञ्चमी तिथीके खरना अर्थात पापक क्षय कहल जाति अछि।खरना साँझूक अर्गसँ एक दिन पहिने रहलाक कारण एहि दिनमे व्रतालुसभ दिनभरि उपवास कऽकऽ साँझमे स्नान कऽ अपन कुल देवता स्थापना कएने पूजा घरमे नव चुल्हिन बना कऽ प्रसाद बनबैत छथि।
प्रसादके रुपमे विशेष कऽकऽ केरा आ खीरके लेल जाति अछि।जकरबाद गायक गोबरसँ निप पोइत कऽ अरबा चाउरसँ तैयार आँटाक अरिपण दऽकऽ व्रतालु साँझमे चन्द्रमाके खीर चढा कऽ प्रसाद ग्रहण करैत छथि।
खरना दिनसँ व्रतालु पूर्ण व्रत लैत छथि जे सप्तमि दिन उगैत सूर्यके अर्ग दऽकऽ समाप्त होइत अछि।
षष्ठी अर्थात तेसर दिन गहुम आ चाउर जाँत तथा ढेकीमे कुटि पिस कऽ एकर आँटासँ छठि पावनिक समाग्री तैयार कएल जाति अछि।छठि पावनिक समाग्री तैयार करैत काल विशेष होशियार रहए परैत अछि।पूजाक समाग्री निरैठ आ शुद्ध राखए परैत अछि।पूजाक समाग्रि जुठ भेला पर अनिष्ट भऽ जाति अछि जनविश्वास अछि। जाहि कारण पूजा समाग्री तैयार करैतकाल महिलासभ श्रद्धापूर्वक गीत सेहो गाएल करैत छथि।
छठि माताके चढाबएबला फलफुल निरैठ राखए परैत अछि।
एहि दिन फलफूल,ठकुवा,भुसवा,खजुरि,पेरुकीया,सरबा,ढकना,कुरबार,माटिसँ बनल हाथीक मुर्ती एकटा ढाकीमे राखि परिवारक सम्पूर्ण सदस्य बिभिन्न लोकगीत एवम भक्ति गीत गबैत जलाशयमे जाति छथि।
जलाशयमे पूजन समाग्रीसभ घाट पर रखबासँ पहिने ओहि ठाम निक जँका सरसफाई कएल जाति अछि।
जकरबाद व्रतालु अस्त भऽ रहल सूर्यके प्रसाद स्वरुप अर्घ देबालेल जलाशयमे प्रवेश कऽ सूर्यास्त होबए धरि आराधना करैत छथि।
पावनिके चारिम दिन अर्थात पारण। एहि दिन भिन्सर उषाकालमे व्रतालुसभ पुन: जलाशय पहुँच कऽ प्रात:कालिन सुर्यके अर्घ दऽ पावनिके समापन करैत छथि।व्रतालुभ छठि व्रतक कथा सुनैत छथि आ सुनाएल करैत छथि।
छठि पावनिके व्रत कएलासँ दु:ख दरिद्रताके अन्त होइत अछि जनविश्वास अछि।
महाभारत अनुसार द्रोपदी सहित पाण्डव लोकनि अज्ञातवासमे रहल समयमे गुप्तवासक सफलताक कामनाकेसँग सूर्यदेवके आराधना कएने रहथिन्ह जकरबाद छठि मनाबक परम्पराके आरंभ भेल अछि।
सूर्य पुराण अनुसार सर्व प्रथम अत्रिमुनिक पत्नी अनुसुया छठि व्रत कएने रहैथ फलस्वरुप हुनका अटल सौभाग्य आ पति प्रेम प्राप्त भेलन्हि जकरबाद छठि पावनि करक परम्पराके शुरुवात भेल।
छठि पावनिके पाछा धार्मिक मान्यताके संगहि वैज्ञानिक आ ज्योतिष सम्बन्धि तथ्यसभ सेहो अछि।
वैज्ञानिक,ज्योतिषी तथा चिकित्सकसभ सेहो सूर्य तत्वसँ अपन ज्ञानक अभिवृद्धि कऽ जनकल्याणकेलेल अन्वेषण कएने छथि।
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